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बहते पानी की तरह मौज-ए-सदा की सूरत | शाही शायरी
bahte pani ki tarah mauj-e-sada ki surat

ग़ज़ल

बहते पानी की तरह मौज-ए-सदा की सूरत

सोज़ नजीबाबादी

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बहते पानी की तरह मौज-ए-सदा की सूरत
सू-ए-मंज़िल हैं रवाँ लोग हवा की सूरत

जादा-ए-ज़ीस्त पे इंसान के आगे पीछे
हादसे घूमते रहते हैं क़ज़ा की सूरत

दर्द को दिल के मिटाने के लिए मैं अब तो
रोज़ लेता हूँ तिरा नाम दवा की सूरत

याद रख दहर की दीवार के हटने पर ही
देख सकती है कोई आँख ख़ुदा की सूरत

हश्र के रोज़ से पहले भी तो मैं दावर-ए-हश्र
ज़िंदगी काट के आया हूँ सज़ा की सूरत

खोज इस दौर-ए-ख़राबी में कोई ख़ूबी 'सोज़'
नस्ल-ए-आदम के लिए कोई बक़ा की सूरत