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बहते दरियाओं में पानी की कमी देखना है | शाही शायरी
bahte dariyaon mein pani ki kami dekhna hai

ग़ज़ल

बहते दरियाओं में पानी की कमी देखना है

शहरयार

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बहते दरियाओं में पानी की कमी देखना है
उम्र भर मुझ को यही तिश्ना-लबी देखना है

रंज दिल को है कि जी भर के नहीं देखा तुझे
ख़ौफ़ इस का था जो आइंदा कभी देखना है

शब की तारीकी दर-ए-ख़्वाब हमेशा को बंद
चंद दिन बा'द तो दुनिया में यही देखना है

ख़ून के क़तरों ने तूफ़ान उठा रक्खा है
अब रग-ओ-पय में मुझे बर्फ़ जमी देखना है

किस तरह रेंगने लगते हैं ये चलते हुए लोग
यारो कल देखोगे या आज अभी देखना है