बहता है कोई ग़म का समुंदर मिरे अंदर
चलते हैं तिरी याद के ख़ंजर मिरे अंदर
कोहराम मचा रहता है अक्सर मिरे अंदर
चलती है तिरे नाम की सरसर मिरे अंदर
गुमनाम सी इक झील हूँ ख़ामोश फ़रामोश
मत फेंक अरे याद के कंकर मिरे अंदर
जन्नत से निकाला हुआ आदम हूँ मैं आदम
बाक़ी वही लग़्ज़िश का है उंसुर मिरे अंदर
कहते हैं जिसे शाम-ए-फ़िराक़ अहल-ए-मोहब्बत
ठहरा है इसी शाम का मंज़र मिरे अंदर
आया था कोई शहर-ए-मोहब्बत से सितमगर
फिर लौट गया आग जला कर मिरे अंदर
एहसास का बंदा हूँ मैं इख़्लास का शैदा
हरगिज़ नहीं हिर्स-ओ-हवस ज़र मिरे अंदर
कैसे भी हों हालात निमट लेता हूँ हँस कर
संगीन नताएज का नहीं डर मिरे अंदर
मैं पूरे दिल-ओ-जान से हो जाता हूँ उस का
कर लेता है जब शख़्स कोई घर मिरे अंदर
मैं क्या हूँ मिरी हस्ती है मज्मुआ-ए-अज़्दाद
तरतीब में है कौन सा जौहर मिरे अंदर
कुढ़ता है कभी दिल कभी रुक जाती हैं साँसें
हर वक़्त बपा रहता है महशर मिरे अंदर
हम-शक्ल मिरा कौन है हम-ज़ाद-ओ-हमराज़
रहता है कोई मुझ सा ही पैकर मिरे अंदर
जब जब कोई उफ़्ताद पड़ी खुल गया 'काशिर'
इल्हाम का इक और नया दर मिरे अंदर

ग़ज़ल
बहता है कोई ग़म का समुंदर मिरे अंदर
शोज़ेब काशिर