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बहार-ए-गुलशन-ए-अय्याम हूँ मैं | शाही शायरी
bahaar-e-gulshan-e-ayyam hun main

ग़ज़ल

बहार-ए-गुलशन-ए-अय्याम हूँ मैं

मीर मोहम्मदी बेदार

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बहार-ए-गुलशन-ए-अय्याम हूँ मैं
सहर नूर ओ सवाद-ए-शाम हूँ मैं

शिताब आ ऐ मह-ए-ईसा-नफ़स तू
कि ख़ुर्शीद-ए-कनार-ए-बाम हूँ मैं

अगर मंज़ूर है आना तो जल्द आ
कि तुझ बिन सख़्त बे-आराम हूँ मैं

बजाए मय तिरी दूरी में ऐ गुल
ब-रंग-ए-लाला ख़ूँ-आशाम हूँ मैं

मुहिब्ब-ओ-मुख़्लिस ओ फ़िदवी हूँ तेरा
समझ तू लाएक़-ए-दुश्नाम हूँ मैं

तुझे देख आप में रहता नहीं मैं
ग़रज़ तुझ वस्ल से नाकाम हूँ मैं

बहार आई चमन में गो मुझे क्या
गिरफ़्तार ओ असीर-ए-दाम हूँ मैं

निशाँ अपना कहीं पाया नहीं याँ
फ़क़त अन्क़ा-सिफ़त यक नाम हूँ मैं

न पैग़ाम ओ सलाम ओ ने मुलाक़ात
अबस तुझ इश्क़ में बद-नाम हूँ मैं

न हूँ परवाना-ए-हर-शम्अ 'बेदार'
फ़िदा-ए-सर्व-ए-गुल-अंदाम हूँ मैं