बहार आई जुनूँ लेगा हमारा इम्तिहाँ देखें
नमक देगा दिल-ए-ज़ख़्मी को शोर-ए-बुलबुलाँ देखें
सिया है ज़ख़्म-ए-बुलबुल गुल ने ख़ार और बू-ए-गुलशन से
सूई तागा हमारे चाक-ए-दिल का है कहाँ देखें
हमें दिल-सोज़ी हमेशा यहाँ तक दीन ओ ईमाँ है
कि जी जलता है जब हम बुलबुल-ए-फ़स्ल-ए-ख़िज़ाँ देखें
गुज़र जाती है दिल से तीर हो कर याद उस क़द की
जहाँ हम-दोश-ए-आशिक़ हम कोई अबरू-कमाँ देखें
हुमा से बच के मुझ मजनूँ को दौलत इश्क़ की हो जो
सग-ए-लैला की क़िस्मत होंगे मेरे उस्तुख़ाँ देखें
चला हूँ 'उज़लत' अब सहरा बगूले की ज़ियारत को
मिलेगा तौफ़ को मजनूँ का बर्बाद आस्ताँ देखें
ग़ज़ल
बहार आई जुनूँ लेगा हमारा इम्तिहाँ देखें
वली उज़लत