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बहार आई है सदमे से हमारा हाल अबतर है | शाही शायरी
bahaar aai hai sadme se hamara haal abtar hai

ग़ज़ल

बहार आई है सदमे से हमारा हाल अबतर है

हक़ीर

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बहार आई है सदमे से हमारा हाल अबतर है
घटा घनघोर छाई है न साक़ी है न साग़र है

निशाँ क्या पूछते हैं आप हम ख़ाना-ब-दोशों का
कभी गुलशन में मस्कन है कभी सहरा में बिस्तर है

हक़ारत की निगाहों से न फ़र्श-ए-ख़ाक को देखो
अमीरों का फ़क़ीरों का यही आख़िर को बिस्तर है

'हक़ीर' इक ख़्वाब था जो आप ने देखा था लंदन में
न वो सामान है बाक़ी न अब पहलू में दिलबर है