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बहार आई है फिर चमन में नसीम इठला के चल रही है | शाही शायरी
bahaar aai hai phir chaman mein nasim iThla ke chal rahi hai

ग़ज़ल

बहार आई है फिर चमन में नसीम इठला के चल रही है

आग़ा शाएर क़ज़लबाश

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बहार आई है फिर चमन में नसीम इठला के चल रही है
हर एक ग़ुंचा चटक रहा है गुलों की रंगत बदल रही है

वो आ गए लो वो जी उठा मैं अदू की उम्मीद-ए-यास ठहरी
अजब तमाशा है दिल-लगी है क़ज़ा खड़ी हाथ मल रही है

बताओ दिल दूँ न दूँ कहो तो अजीब नाज़ुक मोआमला है
इधर तो देखो नज़र मिलाओ ये किस की शोख़ी मचल रही है

तड़प रहा हूँ यहाँ मैं तन्हा वहाँ अदू से वो हम-बग़ल हैं
किसी के दम पर बनी हुई है किसी की हसरत निकल रही है

घटा वो छाई वो अब्र उट्ठा यही तो है वक़्त मय-कशी का
बुलाओ 'शाइर' को है कहाँ वो शराब शीशे से ढल रही है