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बगूले बहुत हैं मिरी घात में | शाही शायरी
bagule bahut hain meri ghat mein

ग़ज़ल

बगूले बहुत हैं मिरी घात में

जावेद शाहीन

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बगूले बहुत हैं मिरी घात में
घिरा हूँ अजब दश्त-ए-हालात में

कभी ख़ूँ से रंगीं भी हो चश्म-ए-तर
धनक भी नज़र आए बरसात में

किसी दर्द की आँच दे कर परख
चमकती है इक शय मिरी ज़ात में

लकीरों का हर सिलसिला बे-कराँ
खुले पानियों का सफ़र हात में

वही तेरी आँखों के हैरत-कदे
वही मैं जहान-ए-तिलिस्मात में

सियह घर की बीमार ज़ौ से निकल
ज़रा घूम-फिर चाँदनी-रात में

बिछा है कहीं ज़ेहन में दाम सा
फड़कता है कोई ख़यालात में

बजा नर्मी-ए-लफ़्ज़ 'शाहीं' मगर
लिए फिर कोई संग भी हात में