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बग़ल में हम ने रात इक ग़ैरत-ए-महताब देखा है | शाही शायरी
baghal mein humne raat ek ghairat-e-mahtab dekha hai

ग़ज़ल

बग़ल में हम ने रात इक ग़ैरत-ए-महताब देखा है

मुबारक अज़ीमाबादी

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बग़ल में हम ने रात इक ग़ैरत-ए-महताब देखा है
तुम्हीं इस ख़्वाब की ताबीर हो क्या ख़्वाब देखा है

तड़प बिजली की भी देखी है वो दिल थाम लेते हैं
तिरी बे-ताबियों को भी दिल-ए-बेताब देखा है

वो उल्फ़त दोस्त हों नासेह दुआ ही दिल से निकली है
अगर दुश्मन के घर भी मजमा-ए-अहबाब देखा है

ख़ुदा के सामने ऐ मोहतसिब सच बोलना होगा
मिरे साग़र में मय देखी है या ख़ूँ-नाब देखा है

'मुबारक' इज़्तिराब-ए-शौक़ का आलम नहीं छुपता
कि जब देखा है हम ने आप को बेताब देखा है