'बद्र' जब आगही से मिलता है
इक दिया रौशनी से मिलता है
चाँद तारे शफ़क़ धनक ख़ुशबू
सिलसिला ये उसी से मिलता है
जितनी ज़ियादा है कम है उतनी ही
ये चलन आगही से मिलता है
दुश्मनी पेड़ पर नहीं उगती
ये समर दोस्ती से मिलता है
यूँ तो मिलने को लोग मिलते हैं
दिल मगर कम किसी से मिलता है
'बद्र' आप और ख़याल भी उस का
साया कब रौशनी से मिलता है

ग़ज़ल
'बद्र' जब आगही से मिलता है
साबिर बद्र जाफ़री