बदनाम हूँ पर आशिक़-ए-बदनाम तुम्हारा
नाकाम हूँ पर तालिब-ए-नाकाम तुम्हारा
मैं इस को न बेचूँ एवज़-ए-मुल्क-ए-सुलैमाँ
है सब्त सर-ए-ख़ातिम-ए-दिल नाम तुम्हारा
याँ साग़र-ए-दिल ख़ून-ए-तमन्ना से भरा है
पर बादा-ए-गुलगूँ से वहाँ जाम तुम्हारा
महरूमी-ए-क़िस्मत है मिरी ख़ास वगर्ना
मशहूर-ए-जहाँ है करम-ए-आम तुम्हारा
जचते नहीं नज़रों में मह-ओ-मेहर के जल्वे
रहता है तसव्वुर सहर-ओ-शाम तुम्हारा
तुम जिस से फिरो उस से हो बरगश्ता ज़माना
दम भरने लगी गर्दिश-ए-अय्याम तुम्हारा
ग़फ़लत में कटी जाती है 'महरूम' जवानी
अच्छा नज़र आता नहीं अंजाम तुम्हारा
ग़ज़ल
बदनाम हूँ पर आशिक़-ए-बदनाम तुम्हारा
तिलोकचंद महरूम