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बदलेगा रुख़ हवा कभी तो | शाही शायरी
badlega ruKH hawa kabhi to

ग़ज़ल

बदलेगा रुख़ हवा कभी तो

अरमान नज्मी

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बदलेगा रुख़ हवा कभी तो
खुल जाएगा रास्ता कभी तो

ग़फ़लत पे ख़ुद अपनी चौंक उठेगा
सुन कर वो मिरी सदा कभी तो

हो जाएगा मुन्कशिफ़ भी ख़ुद पर
देखेगा वो आइना कभी तो

कब तक ये अदा-ए-बे-नियाज़ी
टूटेगा ये सिलसिला कभी तो

खोलेगा वो मुझ पे बाब-ए-रहमत
सुन लेगा मिरी दुआ कभी तो

क़ाएम है उमीद पर ही दुनिया
हल होगा ये मसअला कभी तो

कर देगा ज़मीं का बोझ हल्का
उठेगा गिरा हुआ कभी तो

बैठा हूँ मैं उस के रास्ते पर
हो जाएगा सामना कभी तो

दी है दर्द-ए-दिल पे उस के दस्तक
तय होगा ये फ़ासला कभी तो