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बदला हुआ है रंग जहाँ मय-कशी के बा'द | शाही शायरी
badla hua hai rang jahan mai-kashi ke baad

ग़ज़ल

बदला हुआ है रंग जहाँ मय-कशी के बा'द

मजीद मैमन

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बदला हुआ है रंग जहाँ मय-कशी के बा'द
ख़ुद से लगाव होने लगा बे-ख़ुदी के बा'द

ताबिंदा महफ़िलों में मुझे यूँ न रोकिए
ज़ुल्मत में लौटना है मुझे रौशनी के बा'द

या रब मुझे मुहाल है रंजीदा ज़िंदगी
ले ले मेरी हयात भी मेरी ख़ुशी के बा'द

इस से सिवा भी इश्क़ में क्या और पाइए
हर ग़म लगे है सहल ग़म-ए-आशिक़ी के बा'द