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बड़ी तमन्ना है जाऊँ सू-ए-सितम किसी दिन | शाही शायरी
baDi tamanna hai jaun su-e-sitam kisi din

ग़ज़ल

बड़ी तमन्ना है जाऊँ सू-ए-सितम किसी दिन

नाज़िम सुल्तानपूरी

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बड़ी तमन्ना है जाऊँ सू-ए-सितम किसी दिन
मिज़ाज पूछे तो कोई अहल-ए-करम किसी दिन

वो भीगा चेहरा सभों से हट कर सवाल पूछे
हमारी आँखों की आग होगी न कम किसी दिन

हमारे मस्लक का आदमी क्या कहेगा हम को
जो ढल गए मस्लहत के साँचे में हम किसी दिन

हमारे माबैन बद-गुमानी की ईंट कैसी
मिले जो मौक़ा तो पूछें तुझ से सनम किसी दिन

जो आईने में तुम्हारे जागे वो अक्स रख लो
ये भीड़ परछाइयों की होगी न कम किसी दिन

तुम्हें भी हम ज़िंदगी की कोई सलाह देंगे
समझ गए धूप-छाँव अपनी जो हम किसी दिन

हमारे हिस्से की रौशनी तुम जगाए रखना
कि तीरगी के सफ़र से लौटेंगे हम किसी दिन