बढ़े है दिन-ब-दिन तुझ मुख की ताब आहिस्ता आहिस्ता
कि जूँ कर गर्म हो है आफ़्ताब आहिस्ता आहिस्ता
किया ख़त नें तिरे मुख कूँ ख़राब आहिस्ता आहिस्ता
गहन जूँ माह कूँ लेता है दाब आहिस्ता आहिस्ता
लगा है आप सीं ऐ जाँ तिरे आशिक़ का दिल रह रह
करे है मस्त कूँ बे-ख़ुद शराब आहिस्ता आहिस्ता
दिल आशिक़ का कली की तरह खिलता जाए ख़ुश हो हो
अदा सीं जब कभी खोले नक़ाब आहिस्ता आहिस्ता
लगा है 'आबरू' मुझ कूँ 'वली' का ख़ूब ये मिसरा
सवाल आहिस्ता आहिस्ता जवाब आहिस्ता आहिस्ता
ग़ज़ल
बढ़े है दिन-ब-दिन तुझ मुख की ताब आहिस्ता आहिस्ता
आबरू शाह मुबारक