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बढ़ा तन्हाई में एहसास-ए-ग़म आहिस्ता आहिस्ता | शाही शायरी
baDha tanhai mein ehsas-e-gham aahista aahista

ग़ज़ल

बढ़ा तन्हाई में एहसास-ए-ग़म आहिस्ता आहिस्ता

सय्यद मुबीन अल्वी ख़ैराबादी

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बढ़ा तन्हाई में एहसास-ए-ग़म आहिस्ता आहिस्ता
हमें याद आए सब अहल-ए-करम आहिस्ता आहिस्ता

दिल-ए-मुज़्तर की बेताबी का आलम कैसा आलम है
खिंचा जाता है दिल सू-ए-सनम आहिस्ता आहिस्ता

चला हूँ मंज़िल-ए-जानाँ मैं कुछ ऐसे तअस्सुर से
नज़र शर्मिंदा शर्मिंदा क़दम आहिस्ता आहिस्ता

निगाह-ए-लुत्फ़ किस की हो गई मेरे मुक़द्दर पर
ये किस का हो गया हुस्न-ए-करम आहिस्ता आहिस्ता

मोहब्बत करने का हम को सिला अच्छा मिला ऐ दिल
सिमट आए मिरे दामन में ग़म आहिस्ता आहिस्ता

हक़ीक़त में अगर पूछो बहारान-ए-गुलिस्ताँ का
चमन वालों ने तोड़ा है भरम आहिस्ता आहिस्ता

कहाँ तक ज़ब्त करते बज़्म की कोताह-बीनी को
मुबीन उठना पड़ा बा-चश्म-ए-नम आहिस्ता आहिस्ता