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बढ़ रहा हूँ ख़याल से आगे | शाही शायरी
baDh raha hun KHayal se aage

ग़ज़ल

बढ़ रहा हूँ ख़याल से आगे

ताहिर अज़ीम

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बढ़ रहा हूँ ख़याल से आगे
कुछ नहीं माह ओ साल से आगे

बस हक़ीक़त है जो नज़र आया
है फ़साना जमाल से आगे

मैं तिरे हिज्र में जो ज़िंदा हूँ
सोचता हूँ विसाल से आगे

इस क़दर बा-कमाल हैं ये लोग
कुछ करेंगे कमाल से आगे

शौक़ सदमे से हो गया दो-चार
बढ़ न पाया धमाल से आगे

ये जो माज़ी की बात करते हैं
सोचते होंगे हाल से आगे