बढ़ रहा हूँ ख़याल से आगे
कुछ नहीं माह ओ साल से आगे
बस हक़ीक़त है जो नज़र आया
है फ़साना जमाल से आगे
मैं तिरे हिज्र में जो ज़िंदा हूँ
सोचता हूँ विसाल से आगे
इस क़दर बा-कमाल हैं ये लोग
कुछ करेंगे कमाल से आगे
शौक़ सदमे से हो गया दो-चार
बढ़ न पाया धमाल से आगे
ये जो माज़ी की बात करते हैं
सोचते होंगे हाल से आगे
ग़ज़ल
बढ़ रहा हूँ ख़याल से आगे
ताहिर अज़ीम