EN اردو
बढ़ गई वहशत बहार-ए-फ़ित्ना-सामाँ देख कर | शाही शायरी
baDh gai wahshat bahaar-e-fitna-saman dekh kar

ग़ज़ल

बढ़ गई वहशत बहार-ए-फ़ित्ना-सामाँ देख कर

जौहर निज़ामी

;

बढ़ गई वहशत बहार-ए-फ़ित्ना-सामाँ देख कर
हँस रहा हूँ ख़ुद-बख़ुद चाक-ए-गरेबाँ देख कर

कौन तुम को रोकता है हाँ मगर कहता ये हूँ
दिल में नश्तर दो हुजूम-ए-दाग़-ए-अरमाँ देख कर

क्या कहूँ छिटके हुए बालों ने क्या ढाया ग़ज़ब
दिल परेशाँ हो गया ज़ुल्फ़-ए-परेशाँ देख कर

रात-भर शबनम ही क्या रोती रही गुलज़ार में
रो दिए हम भी गुलों का चाक दामाँ देख कर

दो तुम इतना ग़म कि आसानी से जितना उठ सके
आज़माओ ताक़त-ए-बीमार-ए-हिज्राँ देख कर