EN اردو
बढ़ चला इश्क़ तो दिल छोड़ के दुनिया उट्ठा | शाही शायरी
baDh chala ishq to dil chhoD ke duniya uTTha

ग़ज़ल

बढ़ चला इश्क़ तो दिल छोड़ के दुनिया उट्ठा

मुनीर शिकोहाबादी

;

बढ़ चला इश्क़ तो दिल छोड़ के दुनिया उट्ठा
ख़ुद-बख़ुद जोश-ए-मय-ए-नाब से शीशा उट्ठा

दस्त-ए-नाज़ुक से ज़र-ए-गुल का भी उठना है मुहाल
ये तो फ़रमाइए किस वज्ह से तोड़ा उट्ठा

जब पुकारे लब-ए-जाँ-बख़्श से वो मर गए हम
ना-तवानों से न बार-ए-दम-ए-ईसा उट्ठा

ख़ाकसारों में नहीं ऐसे किसी की तौक़ीर
क़द्द-ए-आदम मिरी ताज़ीम को साया उट्ठा

याद उस बुत की नमाज़ों में जो आई मुझ को
तपिश-ए-शौक़ से हर बार मैं बैठा उट्ठा