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बदन सुंदर सजल मुख पर सिंंहापा | शाही शायरी
badan sundar sajal mukh par sinhapa

ग़ज़ल

बदन सुंदर सजल मुख पर सिंंहापा

नासिर शहज़ाद

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बदन सुंदर सजल मुख पर सिंंहापा
बहुत अनमोल है उस का सरापा

सफ़र की इब्तिदा भी इंतिहा भी
वही लूटा खसूटी आपी-धापा

तो देवी है न मैं अवतार फिर भी
तुझे हर जुग जनम में जी ने जापा

झरोकों से अगर पड़ोसी न झांकें
अभागन तू बता ही ले रँडापा

सखी री हो न हो सय्याँ है मेरा
मिलन सुर जिस ने मुरली में अलापा

कभी पाटे चढ़े जल तेरी ख़ातिर
कभी तपते बयाबानों को नापा

चली थी ख़ुल्द से तू साथ तन्हा
यहाँ आ कर बनी माँ बेटी आपा

गुलाबी हो गई वो सर से पा तक
अलाव पर जब उस ने हाथ तापा

तजा था स्वर्ग क्यूँ सब याद आया
पक्की गंदुम को जब दरांती से कापा

कभी तू मुड़ के तो देखेगी पीछे
कभी तो खाएगी रस्ते पे थापा

पिया अब तो पलट आ देख आई
सफ़ेदी सर पे चेहरे पर बुढ़ापा

जो गरजे वो नहीं बरसे कहीं भी
किया जो तू ने तो उस की सज़ा पा