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बदन में अव्वलीं एहसास है तकानों का | शाही शायरी
badan mein awwalin ehsas hai takanon ka

ग़ज़ल

बदन में अव्वलीं एहसास है तकानों का

इक़बाल अशहर

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बदन में अव्वलीं एहसास है तकानों का
रफ़ीक़ छूट गया है कहीं उड़ानों का

हिसार-ए-ख़्वाब में आँखें पनाह लेती हुई
अजब ख़ुमार सा माहौल में अज़ानों का

चराग़-ए-सुब्ह सी बुझने लगीं मिरी आँखें
जब इंतिशार न देखा गया घरानों का

अमान कहते हैं जिस को बस इक तसव्वुर है
कि यूँ ठहर सा गया वक़्त इम्तिहानों का

जो उस के होंटों की जुम्बिश में क़ैद था 'अशहर'
वो एक लफ़्ज़ बना बोझ मेरे शानों का