बदन को फूँकती हैं नग़्मा-ख़्वानियाँ प्यारे
सुरूद-ए-इश्क़ न छेड़ें जवानियाँ प्यारे
ये बर्ग-ए-ज़र्द कि बिखरे पड़े हैं राहों में
यही हैं मौसम-ए-गुल की निशानियाँ प्यारे
क़दम क़दम ग़म-ए-हिज्राँ की बे-पनाही में
सुना रही है मोहब्बत कहानियाँ प्यारे
कोई उमीद न होती तो जी बहल जाता
रुला रही हैं तिरी मेहरबानियाँ प्यारे
चराग़-ए-हिज्र जलाती रही हैं सारी रात
शरीक-ए-हाल मिरी ख़ूँ-फ़िशानियाँ प्यारे
खिला रही हैं गुल-ए-ज़ख़्म दीदा-ओ-दिल में
करिश्मा-साज़ तिरी दिलसितानियाँ प्यारे
हर इक तरफ़ से लपकता है दिल पे कौंदा सा
कि तेरे हुस्न की हैं क़हर-मानियाँ प्यारे
दिखा रही हैं तुझे बे-शुमार आईने
मिरी निगाह की ये बद-गुमानियाँ प्यारे
तुझे कुछ और भी अफ़्सुर्दा देखते हैं 'नदीम'
तुझे तो रास नहीं शादमानियाँ प्यारे

ग़ज़ल
बदन को फूँकती हैं नग़्मा-ख़्वानियाँ प्यारे
सलाहुद्दीन नदीम