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बदन को फूँकती हैं नग़्मा-ख़्वानियाँ प्यारे | शाही शायरी
badan ko phunkti hain naghma-KHwaniyan pyare

ग़ज़ल

बदन को फूँकती हैं नग़्मा-ख़्वानियाँ प्यारे

सलाहुद्दीन नदीम

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बदन को फूँकती हैं नग़्मा-ख़्वानियाँ प्यारे
सुरूद-ए-इश्क़ न छेड़ें जवानियाँ प्यारे

ये बर्ग-ए-ज़र्द कि बिखरे पड़े हैं राहों में
यही हैं मौसम-ए-गुल की निशानियाँ प्यारे

क़दम क़दम ग़म-ए-हिज्राँ की बे-पनाही में
सुना रही है मोहब्बत कहानियाँ प्यारे

कोई उमीद न होती तो जी बहल जाता
रुला रही हैं तिरी मेहरबानियाँ प्यारे

चराग़-ए-हिज्र जलाती रही हैं सारी रात
शरीक-ए-हाल मिरी ख़ूँ-फ़िशानियाँ प्यारे

खिला रही हैं गुल-ए-ज़ख़्म दीदा-ओ-दिल में
करिश्मा-साज़ तिरी दिलसितानियाँ प्यारे

हर इक तरफ़ से लपकता है दिल पे कौंदा सा
कि तेरे हुस्न की हैं क़हर-मानियाँ प्यारे

दिखा रही हैं तुझे बे-शुमार आईने
मिरी निगाह की ये बद-गुमानियाँ प्यारे

तुझे कुछ और भी अफ़्सुर्दा देखते हैं 'नदीम'
तुझे तो रास नहीं शादमानियाँ प्यारे