बदल गया है सभी कुछ उस एक साअत में
ज़रा सी देर हमें हो गई थी उजलत में
मोहब्बत अपने लिए जिन को मुंतख़ब कर ले
वो लोग मर के भी मरते नहीं मोहब्बत में
मैं जानता हूँ कि मौसम ख़राब है फिर भी
कोई तो साथ है इस दुख-भरी मसाफ़त में
उसे किसी ने कभी बोलते नहीं देखा
जो शख़्स चुप नहीं रहता मिरी हिमायत में
बदन से फूट पड़ा है तमाम उम्र का हिज्र
अजीब हाल हुआ है तिरी रिफ़ाक़त में
मुझे सँभालने में इतनी एहतियात न कर
बिखर न जाऊँ कहीं मैं तिरी हिफ़ाज़त में
यहाँ पे लोग हैं महरूमियों के मारे हुए
किसी से कुछ नहीं कहना यहाँ मुरव्वत में
ग़ज़ल
बदल गया है सभी कुछ उस एक साअत में
सलीम कौसर