बड़ा मुख़्लिस हूँ पाबंद-ए-वफ़ा हूँ
किसी की सादगी पर रो पड़ा हूँ
मिरी क़ीमत ज़मीन-ओ-आसमाँ है
बहुत अनमोल हूँ फिर भी बिका हूँ
छलकता जाम हूँ फिर भी हूँ प्यासा
मैं अपने आप में इक कर्बला हूँ
न जाने गुफ़्तुगू क्या गुल खिलाए
तुम्हारी ख़ामुशी से जल गया हूँ
किताब-ए-दिल को दीमक लग गई है
तुम्हारा नाम क्या है ढूँढता हूँ
हज़ारों दाग़ हैं मेरे बदन पर
न जाने किस के दिल का रास्ता हूँ
'कमाल' इस क़त्ल-गाह-ए-रौशनी में
हज़ारों बार मैं बुझ कर जला हूँ
ग़ज़ल
बड़ा मुख़्लिस हूँ पाबंद-ए-वफ़ा हूँ
अब्दुल्लाह कमाल