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बड़ा ग़ुरूर है पल भर की नेक-नामी का | शाही शायरी
baDa ghurur hai pal bhar ki nek-nami ka

ग़ज़ल

बड़ा ग़ुरूर है पल भर की नेक-नामी का

फ़िराक़ जलालपुरी

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बड़ा ग़ुरूर है पल भर की नेक-नामी का
रिवाज आम है इस दौर में ग़ुलामी का

अमीर-ए-शहर ने दस्तार छीन ली उस की
सिला अजीब दिया रोज़ की सलामी का

लब-ए-फ़ुरात रहे प्यासे वारिस-ए-ज़मज़म
शिकार अकेला नहीं मैं ही तिश्ना-कामी का

बसारत ऐसी बसीरत नवाज़ दे अल्लाह
हमें सुझाई दे नुक्ता हमारी ख़ामी का

कभी तो आइना चेहरे के रू-ब-रू आए
कभी तो लम्हा मयस्सर हो ख़ुद-कलामी का

'फ़िराक़' हो गए पत्थर हमारे दोनों पाँव
बड़ा था नाज़ हमें अपनी तेज़-गामी का