बद-ज़न हैं अहल-ए-काबा मुझ दैर-आश्ना से
कहते हैं मुझ को काफ़िर फ़रियाद है ख़ुदा से
बेदाद मोहतसिब की फ़रियाद है ख़ुदा से
बरसे शराब घर घर मय-ख़्वार की दुआ से
चितवन बदल रही है नाम आ गया वफ़ा का
तेवर बिगड़ रहे हैं अफ़साना-ए-वफ़ा से
हम क्यूँ तुम्हें बताएँ हम क्यूँ तुम्हें जताएँ
रोज़-ए-जज़ा न जाने माँगेंगे क्या ख़ुदा से
वो पूछते हैं मुझ से कैसे हो तुम 'मुबारक'
मैं कह रहा हूँ अच्छा सरकार की दुआ से
ग़ज़ल
बद-ज़न हैं अहल-ए-काबा मुझ दैर-आश्ना से
मुबारक अज़ीमाबादी