बद-गुमाँ क्या क़ब्र में अरमाँ तिरे ले जाएँगे
हम अकेले आए हैं जैसे अकेले जाएँगे
किस क़दर साबित क़दम हैं रह-रवान-ए-कू-ए-दोस्त
जाएँगे फिर उन की कोई जान ले ले जाएँगे
हज़रत-ए-दिल और फिर जाएँ न उस की बज़्म में
झिड़कियाँ दे ले कोई इल्ज़ाम दे ले जाएँगे
तुम सता लो मुझ को लेकिन यूँ न हर इक से मिलो
ज़ुल्म सह लूँगा मगर सदमे न झेले जाएँगे
इस गली में डाल दो ता सँभलें ठोकर खा के ग़ैर
यूँ भी इक दिन ख़ाक में आँखों के ढेले जाएँगे
है दुआओं का असर संग-ए-हवादिस ही अगर
अपने हाथों फिर तो ये सदमे न झेले जाएँगे
ख़ैर ख़्वाहों राज़-दारों की बहुत निय्यत देख ली
आज से हम उस की महफ़िल में अकेले जाएँगे
बे-कसी में कौन किस का साथ देता है 'सफ़ी'
मिलने वाले हैं तमाशे के ये मेले जाएँगे

ग़ज़ल
बद-गुमाँ क्या क़ब्र में अरमाँ तिरे ले जाएँगे
सफ़ी औरंगाबादी