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बद-गुमाँ क्या क़ब्र में अरमाँ तिरे ले जाएँगे | शाही शायरी
bad-guman kya qabr mein arman tere le jaenge

ग़ज़ल

बद-गुमाँ क्या क़ब्र में अरमाँ तिरे ले जाएँगे

सफ़ी औरंगाबादी

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बद-गुमाँ क्या क़ब्र में अरमाँ तिरे ले जाएँगे
हम अकेले आए हैं जैसे अकेले जाएँगे

किस क़दर साबित क़दम हैं रह-रवान-ए-कू-ए-दोस्त
जाएँगे फिर उन की कोई जान ले ले जाएँगे

हज़रत-ए-दिल और फिर जाएँ न उस की बज़्म में
झिड़कियाँ दे ले कोई इल्ज़ाम दे ले जाएँगे

तुम सता लो मुझ को लेकिन यूँ न हर इक से मिलो
ज़ुल्म सह लूँगा मगर सदमे न झेले जाएँगे

इस गली में डाल दो ता सँभलें ठोकर खा के ग़ैर
यूँ भी इक दिन ख़ाक में आँखों के ढेले जाएँगे

है दुआओं का असर संग-ए-हवादिस ही अगर
अपने हाथों फिर तो ये सदमे न झेले जाएँगे

ख़ैर ख़्वाहों राज़-दारों की बहुत निय्यत देख ली
आज से हम उस की महफ़िल में अकेले जाएँगे

बे-कसी में कौन किस का साथ देता है 'सफ़ी'
मिलने वाले हैं तमाशे के ये मेले जाएँगे