बचपन था वो हमारा या झोंका बहार का
लौट आए काश फिर वो ज़माना बहार का
खिड़की में इक गुलाब महकता था सामने
बरसों से बंद है वो दरीचा बहार का
कलियों का हुस्न गुल की महक तितलियों का रक़्स
है याद मुझ को आज भी चेहरा बहार का
अर्सा गुज़र गया प लगे कल की बात हो
उस बाग़-ए-हुस्न में मिरा दर्जा बहार का
दौर-ए-ख़िज़ाँ में दिल के बहलने का है सबब
आँखों में मेरी क़ैद नज़ारा बहार का
कलियाँ को बाग़बाँ ही मसलता है जब कभी
रोता है ज़ार ज़ार कलेजा बहार का
मर्ज़ी पे गुल्सिताँ की भला कब है मुनहसिर
आना बहार का या न आना बहार का
ग़ज़ल
बचपन था वो हमारा या झोंका बहार का
दिनेश कुमार