बचपन का दौर अहद-ए-जवानी में खो गया
ये अम्र-ए-वाक़िआ' भी कहानी में खो गया
लहरों में कोई नक़्शा कहाँ पाएदार है
सूरज के बा'द चाँद भी पानी में खो गया
आँखों तक आ सकी न कभी आँसुओं की लहर
ये क़ाफ़िला भी नक़्ल-ए-मकानी में खो गया
अब बस्तियाँ हैं किस के तआ'क़ुब में रात-दिन
दरिया तो आप अपनी रवानी में खो गया
'ताबिश' का क्या कहें कि वो ज़ोहरा-गुदाज़ शख़्स
आतिश-फ़िशाँ का फूल था पानी में खो गया
ग़ज़ल
बचपन का दौर अहद-ए-जवानी में खो गया
अब्बास ताबिश