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बच-बचा कर जब कहा तारीफ़ मैं कम पड़ गया | शाही शायरी
bach-bacha kar jab kaha tarif main kam paD gaya

ग़ज़ल

बच-बचा कर जब कहा तारीफ़ मैं कम पड़ गया

प्रबुद्ध सौरभ

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बच-बचा कर जब कहा तारीफ़ मैं कम पड़ गया
और खुल के लिख दिया तो शेर में ज़म पड़ गया

वक़्त पर निकले थे और अब तक पहुँच जाते भी हम
बीच में लेकिन मुआ आमों का मौसम पड़ गया

चौदहवीं की रात थी पर चाँदनी थिरकी नहीं
देख घुँगरू की उदासी चाँद मद्धम पड़ गया

संग-ए-मरमर की ज़मीं पर एक सिक्का यूँ गिरा
दो घड़ी को छटपटाया और बे-दम पड़ गया

इस तकल्लुफ़ के शहर में लोग काँटों से चुभे
तू जो अपना सा लगा तो दिल पे मरहम पड़ गया