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बाज़ ख़त पुर-असर भी होते हैं | शाही शायरी
baz KHat pur-asar bhi hote hain

ग़ज़ल

बाज़ ख़त पुर-असर भी होते हैं

आलोक यादव

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बाज़ ख़त पुर-असर भी होते हैं
नामा-बर चारा-गर भी होते हैं

हुस्न की दिलकशी पे नाज़ न कर
आइने बद-नज़र भी होते हैं

तुम हुए हम-सफ़र तो ये जाना
रास्ते मुख़्तसर भी होते हैं

जान देने में सर-बुलंदी है
प्यार का मोल सर भी होते हैं

इक हमीं मुंतज़िर नहीं 'आलोक'
मुंतज़िर बाम-ओ-दर भी होते हैं