बाज़ ख़त पुर-असर भी होते हैं
नामा-बर चारा-गर भी होते हैं
हुस्न की दिलकशी पे नाज़ न कर
आइने बद-नज़र भी होते हैं
तुम हुए हम-सफ़र तो ये जाना
रास्ते मुख़्तसर भी होते हैं
जान देने में सर-बुलंदी है
प्यार का मोल सर भी होते हैं
इक हमीं मुंतज़िर नहीं 'आलोक'
मुंतज़िर बाम-ओ-दर भी होते हैं
ग़ज़ल
बाज़ ख़त पुर-असर भी होते हैं
आलोक यादव