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बातें तो कुछ ऐसी हैं कि ख़ुद से भी न की जाएँ | शाही शायरी
baaten to kuchh aisi hain ki KHud se bhi na ki jaen

ग़ज़ल

बातें तो कुछ ऐसी हैं कि ख़ुद से भी न की जाएँ

हबीब जालिब

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बातें तो कुछ ऐसी हैं कि ख़ुद से भी न की जाएँ
सोचा है ख़मोशी से हर इक ज़हर को पी जाएँ

अपना तो नहीं कोई वहाँ पूछने वाला
उस बज़्म में जाना है जिन्हें अब तो वही जाएँ

अब तुझ से हमें कोई तअल्लुक़ नहीं रखना
अच्छा हो कि दिल से तिरी यादें भी चली जाएँ

इक उम्र उठाए हैं सितम ग़ैर के हम ने
अपनों की तो इक पल भी जफ़ाएँ न सही जाएँ

'जालिब' ग़म-ए-दौराँ हो कि याद-ए-रुख़-ए-जानाँ
तन्हा मुझे रहने दें मिरे दिल से सभी जाएँ