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बात क्यूँकर बने उम्मीद बर आए क्यूँ कर | शाही शायरी
baat kyunkar bane ummid bar aae kyun kar

ग़ज़ल

बात क्यूँकर बने उम्मीद बर आए क्यूँ कर

राक़िम देहलवी

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बात क्यूँकर बने उम्मीद बर आए क्यूँ कर
नाला पुर-शोर नहीं आह शरर-बार नहीं

आज आते हैं मिरे शिकवों का लेने वो हिसाब
ख़ैर है हाथ में उन के कोई तलवार नहीं

मुझ से नफ़रत सही लज़्ज़त-कश-ए-आज़ार तो हूँ
ग़ैर भी ग़ैर है वो ख़ूगर-ए-आज़ार नहीं

जोश-ए-मस्ती में चले आए कहाँ तुम 'राक़िम'
ये तो मस्जिद है चलो ख़ाना-ए-ख़ु़म्मार नहीं