बात के साथ ही मौजूद है टाल एक न एक
है ख़िलाफ़ अपने सदा आप के चाल एक न एक
हम भी इस वास्ते बैठे हैं कि हो रहता है
तुझ सही सर्व के साये में निहाल एक न एक
यार है पास पर अब फ़र्त-ए-तरद्दुद के सबब
आ ही रहता है मिरे दिल को मलाल एक न एक
मैं तो हर-चंद बचाता हूँ व-लेकिन हैहात
खुब ही जाता है इन आँखों में जमाल एक न एक
तुझे कुछ हुस्न-परस्ती से नहीं काम वले
हो ही रहता है मिरे जी का ज़वाल एक न एक
क्या करूँ गरचे भुलाता हूँ बहुत मैं लेकिन
आ ही रहता है तिरा मुझ को ख़याल एक न एक
मज्लिस-ए-वज्द में पढ़ अपनी ग़ज़ल तू 'इंशा'
कर ही बैठेगा अभी सुनते ही हाल एक न एक
ग़ज़ल
बात के साथ ही मौजूद है टाल एक न एक
इंशा अल्लाह ख़ान