बात करना है करो सामने इतराओ नहीं
जो नहीं जानते उस बात को समझाओ नहीं
मैं वो समझा हूँ बयाँ तुम से जो होगा न कभी
बे-ज़रर हूँ मिरे इस कश्फ़ से घबराओ नहीं
इस तरन्नुम में तो मफ़्हूम नहीं है कोई
शेर कहते हो तो पढ़ डालो मगर गाओ नहीं
बंद आँखों में बिखर जाते हैं बजते हुए रंग
मुझ से अंधे को कोई आईना दिखलाओ नहीं
मैं इकाई की तरह सब में समाया 'माजिद'
बात बढ़ जाएगी आदाद को गिनवाओ नहीं

ग़ज़ल
बात करना है करो सामने इतराओ नहीं
माजिद-अल-बाक़री