बात करें यूँ मुँह न खोलें
दिल की बातें आँखें बोलें
कैसे तन्हा रात कटेगी
यादों की गठरी ही खोलें
बहुत जिए औरों की ख़ातिर
अब तो कुछ अपने भी हो लें
ख़्वाबों के कुछ बीज चुने हैं
आँखों के खेतों में बो लें
हर लम्हा इक बोझ लगे है
जैसे भी ढोना हो ढो लें
ग़ज़ल
बात करें यूँ मुँह न खोलें
प्रेम भण्डारी