बारिशें ख़ून की तेज़ हैं तेज़ हैं ख़ून की आँधियाँ
चाक-दर-चाक उड़ने लगीं ख़ून में ज़ीस्त की छतरियाँ
रात पेट्रोल की आग से शहर में यूँ चराग़ाँ हुआ
काँप कर बुझ गईं दिल के रौशन झरोकों की सब बत्तियाँ
बे-अमाँ ख़ल्क़ कर्फ़्यू-ज़दा रोज़-ओ-शब के अँधेरे में गुम
अपनी गर्दन में डाले हुए अपने कत्बात की तख़्तियाँ
दोनों ही लिख रही थीं लहू से मिरे सानेहा क़त्ल का
इक तरफ़ हमला-वर आस्तीं इक तरफ़ पासबाँ वर्दियाँ
गर यूँही आग दामन से उठती रही तो जला डालेगी
हुस्न-ए-गुल-रंग का पैरहन इश्क़-ए-गुलनार की धज्जियाँ
जलती आँखों के मोती पिघलते रहे और एहसास के
रेग-ज़ारों में तपती रहीं मेरे ख़्वाबों की परछाइयाँ
मर्ग-ए-अम्बोह का जश्न-ए-मातम है रौशन करें हम 'शहाब'
फुलझड़ी अश्क-ए-ख़ुश-रंग की ताज़ा ज़ख़्मों की महताबियाँ
ग़ज़ल
बारिशें ख़ून की तेज़ हैं तेज़ हैं ख़ून की आँधियाँ
मंज़र शहाब