बारिश में अक्सर ऐसा हो जाता है
दीवार-ओ-दर पर सब्ज़ा हो जाता है
साख ख़ुशी की क्यूँ गिर जाती है मुझ में
ग़म का परचम क्यूँ ऊँचा हो जाता है
आख़िर-ए-शब दरिया में साँप उतरते हैं
सुब्ह तलक पानी नीला हो जाता है
दिल का सूना रहना ठीक नहीं साहब
सूना दिल आसेब-ज़दा हो जाता है
झोंका आते ही सैराब सदाओं का
ख़ामोशी का दश्त हरा हो जाता है
तन्हा होता हूँ तो मर जाता हूँ मैं
मेरे अंदर तू ज़िंदा हो जाता है
ग़ज़ल
बारिश में अक्सर ऐसा हो जाता है
विकास शर्मा राज़