बारा महीने हिज्र के गुज़रे मलाल में
लाखों ही रंज हम ने सहे एक साल में
लाते नहीं फ़क़ीर किसी को ख़याल में
अल्लाह वाले मस्त हैं अपने ही हाल में
तकलीफ़-ए-क़ैद-ए-ज़ुल्फ़ मिरे दिल से पूछिए
ख़ालिक़ कहीं फँसाए न मछली को जाल में
सुन कर सवाल-ए-वस्ल वो 'जौहर' से कहते हैं
कुछ बात हो तो आए हमारे ख़याल में
ग़ज़ल
बारा महीने हिज्र के गुज़रे मलाल में
लाला माधव राम जौहर