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बार-ए-ख़ातिर बाग़बाँ का ने दिल-आज़ार-ए-चमन | शाही शायरी
bar-e-KHatir baghban ka ne dil-azar-e-chaman

ग़ज़ल

बार-ए-ख़ातिर बाग़बाँ का ने दिल-आज़ार-ए-चमन

मोहम्मद अमान निसार

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बार-ए-ख़ातिर बाग़बाँ का ने दिल-आज़ार-ए-चमन
सब से रहता हूँ अलग जूँ ख़ार-ए-दीवार-ए-चमन

ने धुआँ दिल से उठे यारो न परवाना जले
आतिश-ए-ख़ामोश हूँ मानिंद-ए-गुलज़ार-ए-चमन

सिर्फ़ आराइश को हूँ गुल-हा-ए-काग़ज़ की मिसाल
बू करे मुझ को न कोई और न दरकार-ए-चमन

बुलबुल-ए-रिश्ता-बपा लटके है शाख़-ए-गुल से आज
सख़्त उलझेड़े में है या-रब गुनहगार-ए-चमन

क्या हुए मैं किस से पूछूँ हाल उन का ऐ 'निसार'
अब नज़र आते नहीं वो नाज़-बरदार-ए-चमन