बार-ए-ख़ातिर बाग़बाँ का ने दिल-आज़ार-ए-चमन
सब से रहता हूँ अलग जूँ ख़ार-ए-दीवार-ए-चमन
ने धुआँ दिल से उठे यारो न परवाना जले
आतिश-ए-ख़ामोश हूँ मानिंद-ए-गुलज़ार-ए-चमन
सिर्फ़ आराइश को हूँ गुल-हा-ए-काग़ज़ की मिसाल
बू करे मुझ को न कोई और न दरकार-ए-चमन
बुलबुल-ए-रिश्ता-बपा लटके है शाख़-ए-गुल से आज
सख़्त उलझेड़े में है या-रब गुनहगार-ए-चमन
क्या हुए मैं किस से पूछूँ हाल उन का ऐ 'निसार'
अब नज़र आते नहीं वो नाज़-बरदार-ए-चमन
ग़ज़ल
बार-ए-ख़ातिर बाग़बाँ का ने दिल-आज़ार-ए-चमन
मोहम्मद अमान निसार