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बाक़ी न रहे होश जुनूँ ऐसा हुआ तेज़ | शाही शायरी
baqi na rahe hosh junun aisa hua tez

ग़ज़ल

बाक़ी न रहे होश जुनूँ ऐसा हुआ तेज़

शौक़ माहरी

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बाक़ी न रहे होश जुनूँ ऐसा हुआ तेज़
उतना ही भटकता रहा मैं जितना चला तेज़

दिन ढलने लगा बढ़ने लगे शाम के साए
ऐ सुस्त क़दम अब तो क़दम अपने उठा तेज़

क्या जानिए ज़ालिम ने किसे क़त्ल किया है
क्यूँ हाथों में आज उस के हुआ रंग-ए-हिना तेज़

अब मंज़िल-ए-मक़्सूद बहुत दूर नहीं है
ऐ हम-सफ़रो और ज़रा और ज़रा तेज़

देखो तो सही किस के इशारे पे चली है
आई है किधर से ये फ़सादों की हवा तेज़

अल्लाह रे ये मेरे सफ़ीने का मुक़द्दर
दो हाथ ही साहिल था कि तूफ़ान चढ़ा तेज़

ऐ 'शौक़' मिरे हाल पे ये ख़ूब करम है
जब शम्अ' जलाता हूँ तो होती है हवा तेज़