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बाम से ढल चुका है आधा दिन | शाही शायरी
baam se Dhal chuka hai aadha din

ग़ज़ल

बाम से ढल चुका है आधा दिन

अम्बरीन सलाहुद्दीन

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बाम से ढल चुका है आधा दिन
किस से मिलने चला है आधा दिन

तुम जो चाहो तो रुक भी सकता है
वर्ना किस से रुका है आधा दिन

झाँकती शाम के किनारे पर
मुझ से फिर लड़ पड़ा है आधा दिन

उस ने देखा जहाँ पलट के मुझे
बस वहीं रुक गया है आधा दिन

आस की आहटें जगाए हुए
खिड़कियों में सजा है आधा दिन

धूप की रेशमीं तनाबों पर
किस तरह टूटता है आधा दिन

पड़ रही होगी बर्फ़ वादी में
आँख में जम गया है आधा दिन

तीरगी का लिबास ओढ़े हुए
मेरे अंदर छुपा है आधा दिन

'अम्बरीन' एक है बखेड़े सौ
और गुज़र भी गया है आधा दिन