बाइस-ए-तर्क-ए-मुलाक़ात बताओ तो सही
चाहने वाला कोई हम सा दिखाओ तो सही
कैसी होती है मोहब्बत नहीं मालूम तुम्हें
एक दो दिन कहीं दिल तुम भी लगाओ तो सही
बेवफ़ाई की है तोहमत चलो माना हम ने
हाँ भला हम से ज़रा आँख मिलाओ तो सही
जान दे दूँगा मगर तुम को न जाने दूँगा
उठ के पहलू से भला तुम मिरे जाओ तो सही
नहीं मिलने की जो मर्ज़ी है न मिलना हम से
बात करना कि न करना मगर आओ तो सही
देख लो जीते हैं या मरते हैं मुश्ताक़ सदा
अपनी आवाज़ ज़रा उन को सुनाओ तो सही
हर तरह बिगड़े हुए बैठे हैं जाने के लिए
'आसमाँ' आज कोई बात बनाओ तो सही
ग़ज़ल
बाइस-ए-तर्क-ए-मुलाक़ात बताओ तो सही
मिर्ज़ा आसमान जाह अंजुम