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बाइ'स-ए-अर्ज़-ए-हुनर कर्ब-ए-निहानी निकला | शाही शायरी
bais-e-arz-e-hunar karb-e-nihani nikla

ग़ज़ल

बाइ'स-ए-अर्ज़-ए-हुनर कर्ब-ए-निहानी निकला

अक़ील शादाब

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बाइ'स-ए-अर्ज़-ए-हुनर कर्ब-ए-निहानी निकला
लफ़्ज़ ही मम्बा-ए-दरिया-ए-मआ'नी निकला

सब के होंटों को छुआ अब्र-ए-रवाँ ने लेकिन
मेरे हिस्से का न दरियाओं में पानी निकला

कौन होता है शरीक-ए-सफ़र-ए-तन्हाई
मेरा साया ही मिरा दुश्मन-ए-जानी निकला

ज़िंदगी जिस के तसव्वुर में बसर की हम ने
हाए वो शख़्स हक़ीक़त में कहानी निकला

जिस के सीने में भी 'शादाब' उतर कर देखा
तख़्ता-ए-मश्क़-ए-सितम हाए गिरानी निकला