बाइ'स-ए-अर्ज़-ए-हुनर कर्ब-ए-निहानी निकला
लफ़्ज़ ही मम्बा-ए-दरिया-ए-मआ'नी निकला
सब के होंटों को छुआ अब्र-ए-रवाँ ने लेकिन
मेरे हिस्से का न दरियाओं में पानी निकला
कौन होता है शरीक-ए-सफ़र-ए-तन्हाई
मेरा साया ही मिरा दुश्मन-ए-जानी निकला
ज़िंदगी जिस के तसव्वुर में बसर की हम ने
हाए वो शख़्स हक़ीक़त में कहानी निकला
जिस के सीने में भी 'शादाब' उतर कर देखा
तख़्ता-ए-मश्क़-ए-सितम हाए गिरानी निकला
ग़ज़ल
बाइ'स-ए-अर्ज़-ए-हुनर कर्ब-ए-निहानी निकला
अक़ील शादाब