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बाहर भी अब अंदर जैसा सन्नाटा है | शाही शायरी
bahar bhi ab andar jaisa sannaTa hai

ग़ज़ल

बाहर भी अब अंदर जैसा सन्नाटा है

आनिस मुईन

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बाहर भी अब अंदर जैसा सन्नाटा है
दरिया के उस पार भी गहरा सन्नाटा है

शोर थमे तो शायद सदियाँ बीत चुकी हैं
अब तक लेकिन सहमा सहमा सन्नाटा है

किस से बोलूँ ये तो इक सहरा है जहाँ पर
मैं हूँ या फिर गूँगा बहरा सन्नाटा है

जैसे इक तूफ़ान से पहले की ख़ामोशी
आज मिरी बस्ती में ऐसा सन्नाटा है

नई सहर की चाप न जाने कब उभरेगी
चारों जानिब रात का गहरा सन्नाटा है

सोच रहे हो सोचो लेकिन बोल न पड़ना
देख रहे हो शहर में कितना सन्नाटा है

महव-ए-ख़्वाब हैं सारी देखने वाली आँखें
जागने वाला बस इक अंधा सन्नाटा है

डरना है तो अन-जानी आवाज़ से डरना
ये तो 'आनिस' देखा-भाला सन्नाटा है