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बाग़ सारा तो बयाबाँ न हुआ था सो हुआ | शाही शायरी
bagh sara to bayaban na hua tha so hua

ग़ज़ल

बाग़ सारा तो बयाबाँ न हुआ था सो हुआ

मोहसिन ज़ैदी

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बाग़ सारा तो बयाबाँ न हुआ था सो हुआ
जो ख़िज़ाँ का कभी एहसाँ न हुआ था सो हुआ

हम तो बेदार हुए ख़्वाब से अपने लेकिन
वो भी ख़्वाबों में परेशाँ न हुआ था सो हुआ

हम भी कुछ सोच के कर बैठे बिल-आख़िर शिकवा
वो भी पहले तो पशेमाँ न हुआ था सो हुआ

मिशअलें सर की सजाई गईं तश्त-ए-ज़र में
कब से मक़्तल में चराग़ाँ न हुआ था सो हुआ

सफ़र-ए-जाँ की हुई अब कहीं जा कर तकमील
या'नी मैं बे-सर-ओ-सामाँ न हुआ था सो हुआ

देखते देखते आ पहुँचा सरों तक पानी
अब तक अंदाज़ा-ए-तूफ़ाँ न हुआ था सो हुआ

दोस्तो मैं जो तअ'ल्लुक़ था वो बाक़ी न रहा
दुश्मनों में कोई पैमाँ न हुआ था सो हुआ

और क्या मुझ को सिला मिलता ख़ुलूस-ए-दिल का
हदफ़-ए-तोहमत-ए-याराँ न हुआ था सो हुआ

दश्त में अब्र तो बरसा वो दो इक बूँद सही
पहले इतना भी तो इम्काँ न हुआ था सो हुआ

'मोहसिन' अच्छा ही हुआ उस ने उलट दी जो नक़ाब
रंग उस का जो नुमायाँ न हुआ था सो हुआ