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बाग़ में फूल खिले मौसम-ए-सौदा आया | शाही शायरी
bagh mein phul khile mausam-e-sauda aaya

ग़ज़ल

बाग़ में फूल खिले मौसम-ए-सौदा आया

असीर लखनवी

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बाग़ में फूल खिले मौसम-ए-सौदा आया
गर्म बाज़ार हुआ वक़्त-ए-तमाशा आया

सारबाँ नाक़ा-ए-लैला को न दौड़ा इतना
पाँव मजनूँ के थके हाथ तिरे क्या आया

एक नाले ने मिरे काम किए बाग़ में वो
गुल को तप आई तो शबनम को पसीना आया

रो के मैं ने जो कहा आप की है चाह मुझे
हँस के बोले कि बड़ा चाहने वाला आया

झाड़ दी गर्द जो दामन की कभी हम ने 'असीर'
हँस के फ़रमाया कि तुम को भी सलीक़ा आया