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बाग़ में कलियों का मुस्काना गया | शाही शायरी
bagh mein kaliyon ka muskana gaya

ग़ज़ल

बाग़ में कलियों का मुस्काना गया

शाइस्ता सहर

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बाग़ में कलियों का मुस्काना गया
फूल पर तितली का मंडलाना गया

बे-हुनर होना भी गोया है हुनर
राज़ ये ताख़ीर से जाना गया

मेरे दिल में भी तपाँ हैं वलवले
क्यूँ मुझे बे आरज़ू माना गया

बंद-ए-ग़म से हम रिहा न हो सके
राएगाँ सब सब का समझाना गया

हाथ मलता रह गया शौक़-ए-जुनूँ
तोड़ कर ज़ंजीर-ए-दिल दाना गया

हो चुकी पामाल क़द्र-ए-बंदगी
जब इसे कार-ए-ज़ियाँ जाना गया

आगही की मुश्किलें नाग़ुफ़्तनी
क्यूँ तुझे हद से सिवा जाना गया

कितने चेहरे रखता है वो एक शख़्स
कब 'सहर' तुम से वो पहचाना गया