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बादबाँ को गिला हवाओं से | शाही शायरी
baadban ko gila hawaon se

ग़ज़ल

बादबाँ को गिला हवाओं से

आरिफ़ शफ़ीक़

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बादबाँ को गिला हवाओं से
और मुझ को है ना-ख़ुदाओं से

दुश्मनों से भी अब नहीं लड़ता
पहले लड़ता था मैं हवाओं से

गाँव में लग रहा है फिर मेला
बच्चे बिछड़ेंगे कितने माओं से

लोग मेहनत के बीच बोएँगे
जब भी फ़ुर्सत मिली दुआओं से

हब्स से बुझ गया दिया घर का
मैं बचाता रहा हवाओं से

मेरे खेतों को इस दफ़ा 'आरिफ़'
कितनी उम्मीद थी घटाओं से