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बादलों के बीच था मैं बे-सर-ओ-सामाँ न था | शाही शायरी
baadalon ke beach tha main be-sar-o-saman na tha

ग़ज़ल

बादलों के बीच था मैं बे-सर-ओ-सामाँ न था

अलीमुल्लाह हाली

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बादलों के बीच था मैं बे-सर-ओ-सामाँ न था
तिश्नगी का ज़हर पी लेना कोई आसाँ न था

क्या क़यामत-ख़ेज़ था दरिया में मौजों का हुजूम
साहिलों तक आते आते फिर कहीं तूफ़ाँ न था

जाने कितनी दूर उस की लहर मुझ को ले गई
मैं समझता था कि वो दरिया-ए-बे-पायाँ न था

हर तरफ़ पतझड़ की आवाज़ों की चादर तन गई
दश्त में मेरी सदा का जिस्म भी उर्यां न था

इस के रंग-ओ-सौत के जुगनू थे दामन में 'अलीम'
खो के सब कुछ आने वाला भी तही-दामाँ न था